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ध्वजावरोहन समारोह ..एक संस्मरण [वाघा बॉडर ]–पूर्व प्रकाशित रचना
दिन धीरे धीरे साँझ में ढल रहा था ,हमारी कार अमृतसर से लाहौर की तरफ बढ़ रही थी ,वाघा के नजदीक बी एस एफ के हेडक्वाटर से थोड़ी दूर आगे ही दो बी एस एफ के जवानो ने हमारी कार को रोका ,मेरे पतिदेव गाडी से नीचे उतरे और उनसे आगे जाने की अनुमति ली | वहाँ लाउड स्पीकर पर जोशीला गाना ,”चक दे ,ओ चक दे इण्डिया ”हम सब की रगों में एक अजब सा जोश भर रहा था | हमें एक जवान ने प्रांगण की आगे वाली पंक्ति में बिठा दिया ,ठीक मेरी बायीं ओर सीमा दिखाई दे रही थी ,दोनों ओर के फाटक साफ़ नजर आ रहे थे | बी एस एफ के जवान काले जूतों से ले कर लाल ऊँची पगड़ी तक पूरी यूनिफार्म में तैनात थे |
सीमा के इस ओर भारत का तिरंगा लहरा रहा था ,उस समारोह में शामिल लोग देश प्रेम के गीतों पर जोर जोर से तालियाँ बजा रहे थे ,शाम के साढ़े पांच बज रहे थे ,समारोह की शुरुआत हुई भारत माता की जय से ,गूंज उठा प्रांगण ,वन्देमातरम और हिन्दोस्तान की जय के नारों से ,कदम से कदम मिलाते हुए ,बी एस एफ की दो महिला प्रहरी काँधे पे रायफल लिए मार्च करती हुई सीमा के फाटक की ओर बढती चली गयी |एक ध्वनि लोगों को होशियार करती हुई ”आ आ …….अट” के साथ कदम मिलाते हुए दो जवान फाटक पर पाक सीमा की और मुख किये जोर से अपनी दायीं टांग सीधी उपर कर सर तक लेजाते हुए फिर उसे जोर से नीचे कर ” अट” की आवाज़ के साथ पैर नीचे को पटक कर सलामी देते है | यह पूरी प्रक्रिया तीन,चार बार दोहराई गयी |
शंखनाद के साथ श्रीमद भगवत गीता का एक श्लोक ,”यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिरभवति भारत |अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम || ”की लय पर भारतमाता के प्रहरी कदम मिलाते हुए ,फाटक की ओर बढ़ते हुए उसे खोल दिया गया | रिट्रीट सैरिमोनी में दोनों ओर के सिपाहियों ने ,अपने अपने देश के झंडों को सलामी देते हुए ,ध्वजावरोहन की प्रक्रिया शुरू की | राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत वहाँ बैठा हर भारतीय अपने दिल से जय जयकार के नारे लगा रहा था |राष्ट्रीय गान के साथ दर्शकों ने खड़े हो कर सम्मानपूर्वक ,बी एस एफ के जवानो के साथ राष्ट्रीय ध्वज का अवरोहन किया| तालियों और नारों के मध्य दो जवानो ने सम्मानपूर्वक तिरंगे की तह को अपनी कलाइयो और हाथों पर रख कर सम्मान के साथ परेड करते हुए उसे वापिस लेते हुए चल पड़े |अन्य दो जवान मार्च करते हुए फाटक की तरफ बड़े और उसे बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई |सूर्यास्त होने को था ,आसमान में आज़ाद पंछी सीमा के आरपार उड़ रहे थे ,लेकिन इस आधे घंटे की प्रक्रिया ने सीमा के इस पार हम सबके दिलों को राष्ट्रीय प्रेम के भावना से भर दिया और मै भावविभोर हो नम आँखों से वन्देमातरम का नारा लगते हुए बाहर की ओर चल पड़ी|
रेखा जोशी
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