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मिताली ट्रेन चलने के करीब आधा घंटा पहले ही रेलवे प्लेटफार्म पर पहुँच गई थी । प्लेटफार्म पर बने बेंच पर बैठ कर वह गाडी के आने का इंतज़ार करने लगी । छत पर चल रहे पंखे की गर्म हवा के थपेड़े उसे परेशान कर रहे थे । उसने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और पानी पी कर ठंडी साँस ली । उसकी निगाहें प्लेटफार्म पर इधर उधर दौड़ रही थी ,तभी उसके सर के ऊपर से दो तीन कबूतर उड़ कर चले गए लेकिन जैसे ही उसने नीचे देखा तो एक कबूतर ज़मीन पर फड़फड़ाता हुआ चल रहा था ,शायद उसे कुछ चोट लगी थी ,वह शायद अपने साथियों से बिछुड़ गया था और उसके पीछे पीछे भगवे वस्त्र पहने हुए ,काँधे पर भगवे ही रंग का एक बड़ा सा झोला लटकाये हुए एक साधू जैसा दिखने वाला व्यक्ति चल रहा था । उसकी निगाहें बेचारे निरीह खग पर थी , लग रहा था वह व्यक्ति उस खग को पकड़ने चक़्कर में था और वह प्राणी अपने बचाव में एक बेंच के नीचे जा गया ,लेकिन वह उस क्रूर नज़रों से नहीं पाया ,आख़िर कर उस व्यक्ति ने उस खग को दबोच ही लिया । उसे पकड़ कर वह प्लेटफार्म के बाहर निकल गया लेकिन मिताली के कोमल मन में उथल पुथल मचा गया । वह साधू के भेष में शैतान से कम नहीं था,क्या करेगा उस खग का ,शायद उस निरीह खग को मार कर खा जाये गा ,तभी गाडी की छुक छुक ने उसकी विचारधारा को भंग कर दिया । उसकी गाडी प्लेटफार्म पर आ चुकी थी । मिताली ने बैग उठाया और गाडी के दरवाज़े की ओर बढ़ गई ।
रेखा जोशी
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