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गुड़िया [लघु कथा ]

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गुड़िया

”नही नहीं ,मै अपनी गुड़िया किसी को नहीं दूँगी ” नन्ही मीतू ने अपनी प्यारी गुड़िया को सीने से चिपटा लिया । मीतू तुम्हारी गुड़िया की शादी मेरे गुड्डे से हो चुकी है अब तो तुम्हे अपनी गुड़िया मुझे देनी ही होगी ,अगर नहीं देनी थी तो तुमने उसकी शादी क्यों की ?”मीतू की सहेली नीलू ने उसे समझाया । मीतू के चिल्ला कर कहा ,”कुछ भी ही मै तुम्हे अपनी गुड़िया नहीं दूँगी तो नहीं दूँगी ,तुम अपना गुड्डा लो और चली जाओ यहाँ से । अब तो नीलू को भी गुस्सा आ गया ,”अगर तुमने ऐसे ही करना था तो यह शादी का तमाशा करने की क्या जरूरत थी ”गुस्से में पैर पटकते हुये नीलू चली गई । दूर खड़ी सुरभि अपनी नन्ही सी गुड़िया मीतू की गुड़िया की शादी को देख रही थी ,मन ही मन सोचने लगी ,”मीतू आज तो तुमने ज़िद करके अपनी गुड़िया की विदाई नहीं की लेकिन इक दिन मै तुम्हारी विदाई कैसे रोक पाऊँगी । ”यह सोचते ही सुरभि की आँखों से आँसू बहने लगे ।

रेखा जोशी

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