Zindagi Zindagi
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छोड़ इक
अपनी घरवाली
लगती प्यारी
न जाने क्यों बाहरवाली
भाभी जी पड़ोस की
या फिर
घरवाली की सहेली
दिखती सदा खिली खिली सी
न करती कोई शिकवा
और न ही करती कोई शिकायत
न वह लड़ती
और न ही झगड़ती
है ऐसा ही होता
लगते सदा
ढोल सुहावने दूर के
लेकिन पड़े मुसीबत
अगर कोई
अति काम सदा घरवाली
मत समझो मेरे भाइयों
अपनी पत्नी को किसी से कम
करो सदा उसका सम्मान
गर समझते हो खुद को मुर्गा
होती नही फिर
घर की मुर्गी दाल बराबर
रेखा जोशी
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