Zindagi Zindagi
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क्या ज़माना था वह
जब जुड़े थे हमारे दिल के तार
न कोई फोन था तब
न कोई और साधन
धड़कते दिल को तब
रहता था इंतज़ार तेरे खत का
हर शाम आँखे
टिक जाती दरवाज़े पर
जब तुम दूर थे हमसे
सीमा पर
तेरी चिट्ठी भी तो महीनों
इंतज़ार करवाती थी तब
कांपते थे हाथ पढ़ते हुए खत तेरे
और सजल नैनो से मेरे
बह जाते थे जज़्बात
अश्रुधारा बन पाती पर
है आज भी सहेजे हुए
वो जज़्बात उमड़ आते जो फिर से
जब भी पढ़ती हूँ मै तेरे वह खत
रेखा जोशी
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