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अंतरघट तक प्यासी धरा

Zindagi Zindagi
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देती दुहाई सूखी धरा
करती रही पुकार
आसमाँ पर सूरज फिर भी
रहा बरसता अँगार
सूख गया अब रोम रोम
खिच गई लकीरें तन पर
तरसे जल को प्यासी धरती
सबका हुआ बुरा हाल
है प्यासा तन मन
प्यासी सबकी काया
क्षीण हुआ सबका श्वास
सूख गया है जन जीवन
सूख गया संसार
है फिर भी मन में आस
उमड़ घुमड़ कर आयेंगे
आसमान में बदरा काले
होगा जलथल चहुँ ओर फिर से
जन्म जन्म की प्यासी धरा पे
नाचेंगे मोर फिर से
हरी भरी धरा का फिर से
लहरायें गा रोम रोम
बरसेंगी अमृत की बूदें नभ से
होगा धरा पर नव सृजन
नव जीवन से
अंतरघट तक प्यासी धरा
फिर गीत ख़ुशी के गायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी

रेखा जोशी

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