Zindagi Zindagi
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अब क्या लिखूँ
कैसे लिखूं मै
दर्द भरी दास्तान
…..
सोच रही मै
पकड़ हाथ में कलम
भावनाएं शून्य हुई
शब्द कहीं खो गए
मन हुआ बोझिल
हूँ तड़प रही
कहीं भीतर से
जल बिन मछली की तरह
यह छटपटाहट
कैसे लिखूँ मै
दर्द भरी दास्तान
…….
यहाँ चल रही
यह कैसी हवा
झुलस रही परियां
हर रोज़ यहाँ
दरिंदगी की आग में
पंगु हुआ कानून
खामोश न्याय
कैसे लिखूँ मै
यह दर्द भरी
दास्तान
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