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शून्य है मानव

Zindagi Zindagi
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पूछा मैने
सूरज और
चाँद सितारों से
हस्ती क्या तुम्हारी
विस्तृत ब्रह्मांड के
विशाल महासागर में
जिसमे है समाये
असंख्य तुम जैसे
सूरज आग उगलते
साथ लिए अपने
अनेक चाँद
टिमटिमा रहे जिसमे
अनेकानेक तारे
निरंतर घूम रही जिसमे
असंख्य आकाशगंगाएँ
देख पाती नही जिसे
आाँखे हमारी
रहस्यमय अनगिनत जिसमे
विचर रहे पिंड
और
इस घरती पर
मूर्ख मानव
अभिमान में डूबा हुआ
कर रहा प्रदर्शन
अपनी शक्ति का
अपने अहम का
अपनी सत्ता का
कर रहा पाप अनगिनत
देखता है आकाश रोज़
नही समझ पाया
अपनी हस्ती
शून्य है मानव
विशाल महासागर में

रेखा जोशी

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