Zindagi Zindagi
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पूछती है सवाल
अक्सर
मेरी तन्हाईयाँ
मुझसे
गुनगुनाती जब
धूप आँगन में
गुमसुम सी तब
क्यों खोयी खोयी सी
तन्हाईयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही
जीवन के सफर में
साथी मिले
कुछ अपने कुछ पराये
पराये अपने बने
कभी अपने पराये
पर पीड़ा अंतस की
तन्हाईयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही
महकते रहे फूल
मुस्कुराती रही कलियाँ
बगिया में
पर मुरझाती रही
लेती रही सिसकियाँ
तन्हाईयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही
पूछती है सवाल
अक्सर
मेरी तन्हाईयाँ
मुझसे
जीवन में
न ख़ुशी न गम
क्यों फिर
तन्हाइयों में अपनी
भीतर ही भीतर
सुलगती रही
रेखा जोशी
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