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नारी सशक्तिकरण, हमारे धर्म का आधार

Zindagi Zindagi
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घनी झाड़ियों में छुपे वह चार पुरुष थे और वह अकेली लड़की ,वो रो रही थी ,चिल्ला रही थी लेकिन उन वहशी दरिंदों के चुंगल से निकलना उसके लिए असंभव था ,वो बलशाली और वह निर्बल अबला नारी ,सिर्फ शारीरिक रूप से अबला लेकिन मन शक्तिशाली ,वह उनके बाल नोच रही थी ,उन भेड़ियों को अपने दांतों से काट रही थी परन्तु उन जंगलियों से अपने तन को बचाने में वह नाकायाब रही ,बुरी तरह से घायल उस लड़की को वह भेड़िये मरा हुआ समझ वही छोड़ कर भाग गए ,हर रोज़ अखबार ऐसी मार्मिक दुर्घटनाओं से भरा होता है । आज नारी की सुरक्षा को लेकर हर परिवार चिंतित हो रहा है ,बलात्कार हो याँ यौन शोषण इससे पीड़ित न जाने कितनी युवतियां आये दिन आत्महत्या कर लेती है और मालूम नही कितनी महिलायें अपने तन ,मन और आत्मा की पीड़ा को अपने अंदर समेटे सारी जिंदगी अपमानित सी घुट घुट कर काट लेती है क्या सिर्फ इसलिए कि ईश्वर ने उसे पुरुष से कम शारीरिक बल प्रदान किया है |यह तो जंगल राज हो गया जिसकी लाठी उसकी भैंस ,जो अधिक बलशाली है वह निर्बल को तंग कर सकता है यातनाएं दे सकता है ,धिक्कार है ऐसी मानसिकता लिए हुए पुरुषों पर ,धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां मनुष्य नही जंगली जानवर रहतें है |जब भी कोई बच्चा चाहे लड़की हो याँ लड़का इस धरती पर जन्म लेता है तब उनकी माँ को उन्हें जन्म देते समय एक सी पीड़ा होती है ,लेकिन ईश्वर ने जहां औरत को माँ बनने का अधिकार दिया है वहीं पुरुष को शारीरिक बल प्रदान किया ,उसे सुरक्षा और सम्मान देने के लिए न कि उसका शोषण करने लिए |
महिला और पुरुष दोनों ही इस समाज के समान रूप से जरूरी अंग हैं लेकिन हमारे धर्म में तो नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है , नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है । हमारे वेदों के अनुसार भी ‘जहाँ नारी की पूजा होती है ‘ वहाँ देवता वास करते है परन्तु इसी धरती पर नारी के सम्मान को ताक पर रख उसे हर पल उसका शोषण होता है ,उसे अपमानित किया जाता है | अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है, लेकिन इस पुरुष प्रधान समाज में आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है । जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने की जी जान से कोशिश कर रही है ,वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है ।
शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी को क्यों मजबूर और असहाय समझा जाता है |अब समय आ गया है सदियों से चली आ रही मानसिकता को बदलने का और सही मायने में नारी को शोषण से मुक्त कर उसे पूरा सम्मान और समानता का अधिकार दिलाने का ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां नारी पुरुष से पीछे रही हो एक अच्छी गृहिणी का कर्तव्य निभाते हुए वह पुरुष के समान आज दुनिया के हर क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू रही है ,क्या वह पुरुष के समान सम्मान की हकदार नही है ?तब क्यूँ उसे समाज में दूसरा दर्जा दिया जाता है ?केवल इसलिए कि पुरुष अपने शरीरिक बल के कारण बलशाली हो गया और नारी निर्बल। हमे तो गर्व होना चाहिए कि इस देश की धरती पर लक्ष्मीबाई जैसी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया है ,वक्त आने पर जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति भी दी है और जीजाबाई जैसी कई माताएं भी हुई है जिन्होंने कई जाबाजों को जन्म दे कर देश पर मर मिटने की शिक्षा भी दी है ,नारी की सुरक्षा और पुरुष के समान सम्मान ही एक स्वस्थ समाज और सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकती है ,जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह माँ ही है जो उसका प्रथम गुरु बनती है ,जब इस समाज में नारी ही असुरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढियां भी सदा असुरक्षा के घेरे में रहें गी ,जब तक गुरु माँ ही डरी सहमी सी रहे गी तो अपनी संतान को क्या सिखा पाए गी, तब तक इस समाज में ,संस्कारशून्य ,संवेदनहीन और जंगली जानवर ही पनपते रहेगे और इस राष्ट्र का तो फिर भगवान् ही मालिक होगा |

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